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नीतीश की चुप्पी और बिहार में भ्रष्टाचार का नया भूचाल

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मोहम्मद आलम

पटना। बिहार में राजनीतिक तूफ़ान थमने का नाम नहीं ले रहा। सोमवार को जन सुराज अभियान के संस्थापक प्रशांत किशोर (पीके) ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और मंत्री अशोक चौधरी पर गंभीर आरोप लगाकर राज्य की सियासत में भूचाल ला दिया। लेकिन इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल है – मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चुप्पी।नीतीश कुमार हमेशा चुनावी भाषणों और सार्वजनिक बयानबाजी में “जीरो टॉलरेंस” की बात करते रहे हैं। लालू के समय के जंगल राज की निंदा करते हुए उन्होंने तेजस्वी यादव पर लगे आरोपों पर सख्त कार्रवाई और समर्थन वापस लेने का उदाहरण भी दिया। लेकिन अब, उनके अपने मंत्रियों और सहयोगियों पर हत्या, 100 करोड़ का ट्रस्ट और 5% कमीशन जैसे गंभीर आरोप लगे हैं, फिर भी मुख्यमंत्री क्यों चुप हैं?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह चुप्पी न केवल नीतीश कुमार की नैतिकता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करती है, बल्कि जनता के बीच सत्ताधारी पार्टी की साख को भी कमजोर करती है। जनता यह देख रही है कि वही नेता, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने का दावा करते थे, अब अपनों के भ्रष्टाचार पर मौन साधे हैं।पीके ने साफ कहा कि यदि दोषियों को बचाने की कोशिश हुई तो वे कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे और जनता के बीच घेराव और आंदोलन होगा। ऐसे में सवाल यह है कि क्या नीतीश कुमार सत्ताधारी नेताओं की नीतियों और नैतिकता पर खरा उतरेंगे, या उनके घोषणापत्र और नारे बस कागज़ों तक ही सीमित रह जाएंगे।
बिहार की जनता इस चुप्पी को नजरअंदाज नहीं करेगी। समय आने पर नीतीश कुमार को ही जवाब देना पड़ेगा – क्या उनका जीरो टॉलरेंस केवल भाषणों में था या वास्तव में भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई में भी?

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